वैवाहिक संबंध का वासना प्रधान होते जाना बहुत चिन्ता की बात है!
सामाजिक चिंतन
आजकल हम सभी युवा लड़के लड़कियों का रिश्ता उसका रंग, रूप देखकर तय करने लगे हैं। रूप की मांग ने ब्यूटी पार्लर व्यवसाय, फोटोग्राफी/ वीडियोग्राफी के व्यवसाय को काफी बढ़ा दिया है। लेकिन इससे बहुत सारी अनचाही घटनाएं घटने लगी हैं और विवाह कार्यक्रम के दौरान बेहूदा हरकतें भी होती हैं। इससे सामाजिक अचार विचार और संस्कार बहुत प्रभावित हो रहा है और भावी पीढ़ी के सामने विकट समस्या पैदा हो गई है।
अफ़सोस है कि हमारे घरों में बेटियों को गुणवती बनने की शिक्षा नहीं दी जाती, बल्कि रूप सजाने की ट्रेनिंग दी जाती है।
परिणाम यह होता है कि रंग, रूप, ऊंचाई आदि में से कुछ भी कमी होने से योग्य जीवन साथी नहीं मिल पाता। और बेटियों की उम्र बढ़ जाती है!
क्या विवाह का उद्देश्य केवल भोग है, जो हम शरीर को ही सर्वोपरि मानकर वैवाहिक रिश्ता तय करते हैं? माना कि स्त्री और पुरुष के रिश्ते का आधार शरीर संबंध है। इसके द्वारा ही वैवाहिक जीवन की शुरुआत होती है। किन्तु वासना पूर्ति ही सब कुछ नहीं है। गृहस्थ जीवन का / विवाह संस्कार का उद्देश्य वासना का शमन और श्रेष्ठ संतान की उत्पत्ति है। इसलिए इसको संस्कार कहा गया है! और सामाजिक मान्यता प्रदान करने के उद्देश्य से ही विवाह को सबकी उपस्थिति में सार्वजनिक रूप से संपादित किया जाता है।
स्त्री और पुरुष दोनों में कुछ विशेषताएं हैं और कुछ कमियां भी। विवाह द्वारा दोनों पूर्णता को प्राप्त करते हैं। संयुक्त रूप से सार्वजनिक जीवन जीना शुरू करते हैं।
विवाह पश्चात परिवार में अनेक रिश्तों के साथ व्यवहार बरतना होता है। घर की जिम्मेदारी निभानी पड़ती है। अतिथियों का सत्कार करना पड़ता है। और सामाजिक अचार विचार एवं व्यवहार का पालन करना होता है। उसके साथ स्त्री पुरुष का सहजीवन/ सहवास प्रारंभ होता है।
गृहस्थ जीवन में उम्र बढ़ते और परिपक्वता आते आते क्रमशः धीरे धीरे शरीर संबंध को शिथिल करते हुए वासना का शमन किया जाता है और पवित्रता, सात्विक भाव एवं आत्मिक प्रेम को सुदृढ़ किया जाता है।
इस प्रकार गृहस्थ जीवन वासना से परे प्रेम और समर्पण में पहुंचकर सिद्ध होता है।
अब समय आ गया है कि हम अपने समाज को सिखाएं कि वैवाहिक संबंध रंग और रूप के आधार पर नहीं, अपितु गुण और शील के आधार पर करें!